चंद सदियों पहले यहांपर
शहजादोंके खिदमत में लगे रहते थे कई नौकर चाकर..
बुलंद दरवाजोंपर झूमते हाथी
कई कतारें लगती थी बाशिंदों की...
किया करते थे लाचारी भरे सलाम
झुककर.. घुटनोंपर बैठकर..
अब हालात कुछ ऐसे हैं की
टूटे चरमराते दरवाजों की आवाज..
खामोशी को अचानक चीरकर...
परिंदों के परों की परवाज...
वक्त...हां वक्त के आगे..
बेबस होते हैं.. जागीरों सल्तनतोंके मालिक और नवाब ..